Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 128
________________ वही घट गया अभिग्रह पूर्ण हुआ कुहासा छंट गया महावीर ने असे बाद करपान बढ़ाया. मनुष्य तो मनुष्य पशु-पक्षियों और देवी-देवताओं के नयनों में भी हर्ष भन अया चन्दना ने अठार नहीं दिया अपने हाथों से अपनी सबसे बड़े खुशी छुई धनाक के घर देवों द्वारा रत्नों की बारिश हुई चन्दना का भर गया निक्त मन 'अहो दान...अहो छान के घोष से गूजने लगे धरती-गगन साने के माने दुःनव छूट गये हथकड़े-बेड़ियों के बंधन तड़तड़तड़तड़ खुद टूट गये अंधविश्वासों की...नामी-दुर्दशा की यह टूटन धर्म से पावनता से युक्त हुई वस्तुत: चन्दना के रूप में नानी-जाति पराधीनता से मुक्त हुई अब तो चन्दना को सबने पहचाना सबने सम्मान दिया पर उसने महावीर की ही अनुगामिनी होने का निश्चय किया धन्य वह तप धव्य वह क्षण धन्य वह चन्दना जो मष्ठावीर के चरणों में हो गई वन्दना केवल वन्दना । प्रकाश-पर्व : महावीर /107 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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