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देह से देहातीत प्रभु जिये इसलिये कि भेल-भाव, अधर्म और मिथ्यात्व के घेरे से जीव निकले उन्हें सत्य का बोध प्राप्त हो धनती से सारे समुद्र सूनवे तो दुनिया को मष्ठावीर का दिया समाप्त हो प्रभु की देन अब भी है असनव्य चेतनाओं के पास पावापुरी में था शासनपति भ्रमण भगवान् महावीर का अन्तिम वर्षावास
शीतलता का नीर थे समझ गये-वर्तमान और अगामी जीवों की ज्ञान-पिपासा
वहाँ
विधिवत् किसी ने नहीं की जिज्ञासा पर प्रभु तो
वह शान्त की सोलह प्रन तक निरन्तर धर्म की विनासत वाचना प्रदान की फिर अन्तिम उत्तर अध्ययन कहा जिसमें छत्तीस विराम अनन्त काल तक अयेगी वह भव्य जीवा के काम
कहते-कहते वे मौन हो गये असीम समाधि में खो गये नष्ट हुआ शेष चार अधाति कर्मों का संयोग मन-वचन-काय का योग हो गया अयोग
प्रकाश-पर्व : महावीर /127
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