Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 130
________________ बुद्धि कहाँ होती है ध के दीवानों में वह लकड़ के दो लम्बे-नुकीले टुकड़े ले अया ओर एक-एक कर ठोकने लगा महावीर के कानों में हथौड़े के साथ-साथ घोर यातना का क्रम चल रहा था पर धन्य है महावन का ध्यान उसे कुछ भी नहीं नवल रहा था कितना केन्द्रित और घनीभूत था वह ध्यान उनसे दून नह कैसे लेता केवल ज्ञान ! किसान कानों में कीलें ठोक कर चला गया उसका हृदय जना भी नहीं डोला कुछ समय बाद महावीर ने ध्यान नवोला तप के पारणे के लिये गये जिनभक्त सिद्धार्थ के घर उसी समय खनक नामक वेध भी था वहीं पर उसके शमीन व अकृति-विज्ञान ने बतायाकिसी भयानक शल्य से आहत है यह तेजस्वी काया पारणे के पश्चात् सिद्धार्थ और नवरक औषधि अदि लेकन महावीर के पीछे-पीछे चल दिये साथ-साथ महावीर ने ध्यान लगाया उद्यान में प्रकाश-पर्व : महावीर /109 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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