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और अपार जनसमूह को अकर्षित कर लिया जनता कोगी सत्य का सत्कार जब वह शास्त्रार्थ में जायेगा हार
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सोचते हुए इछाभूति गौतम अदि विछान् चल दिये महासेन उद्यान जैसे-जैसे उद्यान अता गया पास वैसे-वैसे होता चला गया संशय का हास समवशरण को देलवा तो धुंधली पड़ गई आत्मविश्वास की सेवा प्रभु के दर्शन किये
तो तर्कों का जंजाल नवो गया अनुभूत ज्ञान के सम्मुसव पोथियों का ज्ञान व्यर्थ हो गया वह सब मिट गया जो मन में ठाना था
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प्रभु की वाणी गूजी"तुम आ गये गौतम ! तुम्हें तो आ ही जाना था ।"
एक ओर ज्ञान-वाणी की अतुलनीय मिठास दूसनी अर शुष्क बौद्धिकता का नीलम विलास गौतम मिठास की धारा में बह गये कुछ समय के लिये अवाक् रह गये
प्रकाश-पर्व : महावीर /116
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