Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 140
________________ हिंसा और अहिंसा की तराजू पर ही ज्ञान और अज्ञान को तोलो दूसों को कु-सव देने वाला कठोर सत्य भी मत बोलो। बीता हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता जीव मनुष्य-जन्म बार-बार नहीं पाता कुशा की नोक पर रहने वाले अस-बिकु के समान यह जीवन भी है अल्प शीधातिशीघ्र को धर्म का संकल्प । देलवो ! क्रोध, प्रीति की लय का अकान, विनय का मित्रता का, माया और सभी सद्गुणों का, लोभ की छाया विनाश कर देती है तन-मन-जीवन में पाप भर देती है। संसार के वदन-पूजन का काँटा बहुत सूक्ष्म है बड़ कठिनाई से निकलता है सावधान ! इस कीचड़ में पड़ साधक असानी से नहीं सम्भलता है। यह पृथ्वी धन-धान्य-सम्पदा से पूर्णत: परिपुष्ट स्वयं समर्पित होकर भी नहीं कर सकती लोमीको सन्तुष्ट, भोग पतन की अनन्त गहराइयों तक ले जाता है केवल संयम है जो सच्चा अनळ दे पाता है। काम-भोग अतृप्ति के कहन है अमृत के वास्ते भी जहर है भोगों की लालसा नवने वाले प्राणी AM प्रकाश-पर्व : महावीर /119 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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