________________
केवल प्यास पाते हैं दुर्गति को प्राप्त होते हैं प्यासे ही मर जाते हैं
गीत सब विलाप है नाट्य सब विडम्बना अर अभरण सबभार संसार के सब काम-भोग टुरवावह हैं इळे छोड़ने को नसो तैयार ।
मृत्यु का शेर प्राणों के हिरण को अ समय उठा ले जाता है तब सगे से सगा सम्बन्धी भी किसी का साथ नहीं दे पाता है संसार मेला है मनुष्य मूलतः और अन्तत: अकेला है।
संसार-रुपी कफ (श्लेष्म) में फंसते हैं अत्मा ही नरक की वैतरणी नदी और कूट शाल्मलि वृक्ष की चुभन है आत्मा ही स्वर्ग की कामदुधा धेनु (गो) तथा नछन-वन है
अत्मा का कल्याण सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चानिन्न से सधेगा जीव यदि विवेक से चले विवेक से नखड़ा हो विवेक से बैठे विवेक से सोचे विवेक से भोजन को और विवेक से ही बोले तो पाप कर्म नहीं बंधेगा
काम-भोगों को सर्वस्व मान कर चरवते है हँसते हैं, वे जीव मक्नवी की तरह
कोई कितना ही कठोर तप को परन्तु यदि वह मायावी बन छलेगा तो उसे त्रास अर्थात पुन:-पुनः गर्भवास प्राप्त होगा
प्रकाश-पर्व : महावीर /120
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org