Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 136
________________ देवताओं ने दिव्य समवशरण रचाया प्रभु को सुनने बच्चा-बच्चा अया ब्राहमण तो उसी समय सोमिल ब्राहमण ने वहाँ एक विशाल यज्ञ का अयोजन किया था। इन्द्रभूति गौतम प्रभृति व्यानह उभट विद्वानों को उनके चार हजार चार सौ शिष्यों सहित निमन्त्रण दिया था यज्ञ में लालवों के शामिल होने की थी अशा परन्तु साक्षात् ज्ञान-रूप महावीर की प्रथम देशना के कारण क बन गई निनाशा सभी दिशाओं से उमड़ते जनसमूह समवशरण की ओर जाने लगे देवताओं के विमान स्वयं को एक-दूसने से टकराने से बचाने लगे आकाश से दिव्य पुष्प-वृष्टि होने लगी व्यापक धर्म-प्रभावना की सृष्टि होने लगी इन्द्रभूति गौतम ने भी देलवा चमत्कार उठे लगा'यह तो हमारे अस्तित्व को चुनौती है इसे करना ही होगा स्वीकार वैदिक संस्कृति के प्रति जन-जन में नया विश्वास भरना होगा महावीर को शास्त्रार्थ में पराजित करना होगा तभी पड़ेगा कुछ पर्क हमारे पास तो असनव्य हैं तर्क लगता हैमहावीर ने सम्मोहिनी विढ्या का प्रयोग कर दिया प्रकाश-पर्व : महावीर /115 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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