Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 131
________________ खरक ने जाँच की पाया कीलें ठोंकी गई कान में चिमटी से दोनों को निकाला रह-रह कर कीलो के साथ खून भी निकलने लगा बह-बह कर कीलें जितनी लम्बी थी उतनी ही कड़ी उनके बाहर निकलते ही रक्त की धाराये चल पड़ी Jain Education International प्रकाश पर्व: महावीर / 110 इस सहनशीलता के चरणों में खरक भी झुका औषधि का लेप किया रक्त रुका बस ! यही था अन्तिम उपसर्ग इसके बाद समस्त कष्ट वो गये जन्म-मरण और सुख-दुःख देने वाले सभी कर्म मूलतः अशेष हो गये अंतत्रो से महावीर रहे थे विलोक बस ! अब प्रकट होने ही वाला है। पूर्ण ज्ञान का आलोक आलोक ! For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org/

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