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खरक ने जाँच की
पाया
कीलें ठोंकी गई कान में
चिमटी से
दोनों को निकाला रह-रह कर
कीलो के साथ
खून भी निकलने लगा बह-बह कर
कीलें जितनी लम्बी थी
उतनी ही कड़ी
उनके बाहर निकलते ही रक्त की धाराये चल पड़ी
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प्रकाश पर्व: महावीर / 110
इस सहनशीलता के चरणों में खरक भी झुका
औषधि का लेप किया
रक्त रुका
बस !
यही था अन्तिम उपसर्ग
इसके बाद समस्त कष्ट वो गये
जन्म-मरण और सुख-दुःख देने वाले सभी कर्म
मूलतः अशेष हो गये
अंतत्रो से
महावीर रहे थे विलोक
बस !
अब प्रकट होने ही वाला है।
पूर्ण ज्ञान का आलोक आलोक !
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