Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 127
________________ महावीर असम्भव से परिग्रह को सम्भव करने चले चन्दना जहाँ बैठी थी वहीं आ निकले महावीर को देख चन्दना खुशी से खड़ी हो गई उसे लगा वह खुद से बड़ी हो गई जिसे जमाने भर ने दुत्काना है उसे महावीर ने सत्कारा है। वे उसके द्वार तक आयेंगे रोम-रोम में स्वागत की उमंगें चेहरे पर अरसे बाद खुशी की तरंगे Jain Education International महावीर ने देखा - के असंभव के संभव होने की सम्भावना यहीं है पर इसकी आँखों में आँसू नहीं हैं, वापिस मुड़ गये महावीर चन्दना अधीर मन अपने को अभागा कह चला हृदय का समस्त धैर्य हिचकियों की लहनों के साथ पलकों के कूल-किनारे तोड़ता बहु चला महावीर एक बार फिर चन्दना की ओर मुड़े चन्दना के धधकते नेत्र पुनः शीतलता से जा जुड़े जो असम्भव लगता था प्रकाश-पर्व: महावीर / 106 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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