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महावीर ने ठण्डा उच्छ्वास छोड़ा पहली बार अपना दीर्घ मौन तोड़ा"संगम ! तुमने पनीक्षा लेने के चक्कर में अनन्त कर्म बांध लिये हँस-हँस कर पर ये जब उदय में आयेंगे तो तुम्हें सतायेंगे कस-कस कर जब कर्म-फल भोगोगे
तब तुम्हारी सहनशक्ति किस-किस तरह नीतेगी तुम पर क्या-क्या बीतेगी उसी कल्पना-मान से मैं सिहर उठा हूँ गहने कु:नव से भर उठा हूँ!"
संगम ने सुना सिर धुना ग्लान-म्लान चित्त वह सोच रहा थाप्रायश्चित्त प्रायश्चित्त
प्रायश्चित्त ।
प्रकाश-पर्व : महावीर /97
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