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सार-तत्व पाते
बहुत दिन इसी तरह बीते परन्तु संगम के उपद्रव नहीं जीते
फिर भी उसने हार नहीं मानी
ग्वाले के रूप में
दूध और चावल लाकर खीर बनाने की ठानी
ध्यानस्थ महावीर के पाँवों के पास... बहुत पास लकड़ियाँ जलाने लगा
उन पर बरतन रख रखीर पकाने लगा
त्वचा जलने लगी
माँस जलने लगा
हड्डियाँ सुलगने लगीं देह में व्यापने लगी मर्मांतक पीड़ा
पर साधना की शक्ति के लिये बड़ी से बड़ी यातना भी थी क्रीड़ा
महावीर का मन
न हिलना था, न हिला अनन्त उपसर्ग दिये संगम ने
पर प्रतिध्वनि-स्वरूप कम्पन तक नहीं मिला
प्रकाश पर्व : महावीर / 95
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