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महावीर को
फाँसी के तख्ते पर खड़ा किया गया
गले में फाँसी का फन्दा
डाल कर खींच दिया गया
किसी ने नहीं देखा इधर-उधर
तख्ता हटा
रस्सी टूटी महावीर
ज्यों के त्यों ज़मीन पर
पुनः फाँसी दी गई
परिणाम फिर वही
उन्हें
फाँसी दी गई सात बार पर निराशा का सन्नाटा बरकरार
संगम फिर भी नहीं हुआ हताश उसने अनुकूल व प्रतिकूल परीषहों के नये-नये उपाय किए तलाश
वह
छाया-सा लगा रहा उन के संग-संग तप के पूर्ण होने पर जब कभी आता पारणे का प्रसंग
तो कोई न कोई उपद्रव कर देता
कभी भिक्षु बन स्वयं मांगने आ जाता
कभी देय वस्तु में
सचित वस्तु भर देता
महावीर लौट जाते.
ध्यान व तप की साधना में
पुनः पुनः सार-तत्त्व पाते
प्रकाश पर्व : महावीर / 94
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