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पिन उसने चलाई तेज़ हवा पर महावीर को छू कर वह बन गई कई लोगों की दवा पिर चलाई आधी धूल-भनी काली महावीर धूल के ढेर में लगभग दब गये । पर कौन कहे कि उन्होंने पलकें झपका ली फिर विषैली चीटियों का दल छा गया पूरे शरीर पर केह के रोम-मोम पर यातनाओं का स्याह रंग पर मज़ाल कि ज़रा-भी अंच आई हो
साधक महावीर पर पिर आये मच्छन वे भी हार गये काट-काट कर पिर दीमकों का आक्रमण कराया उनके नीचे छिप गई महावीर की काया फिर बिच्छुओं पिर साँपों फिर हाथियों के प्रहार अंतत: बेकार
अकार अपनी हार यूँ ही नहीं करता स्वीकार संगम पुनः तैयार
प्रकाश-पर्व : महावीर /92
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