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क्षमा ने धारण की देह
साधना महावीर की थी
देवलोक तक प्रकाश-सी प्रसारित हो गई धन्य हआ इन्द्रगुणगान से पर संगमदेव के मन में जागे ईर्ष्या व शंका के विषधर सोचा‘निर्णय तो होना चाहिये देख-परख कर यहव्या कि देवशक्ति को अपमानित करने की ठान लें मनुष्य को यूं ही महान् मान लें'
चल दिया सुविधा-पोषित अकार देवने
कितना मजबूत है महावीर-साधना का आधार ! पहले उसने माता-पिता, भाई-भाभी, पत्नी-पुत्री के करुण क्रन्दन सुनाये सबके मोठाकुल विलाप महावीर को हिला न पाये नाग कालेश-मान शेष न था महावीर के मन में अर्थ तो था इन्द्र के अभिनन्दन में हार गई अप्सलायें मोहित करने आई थी पर कहने लगीं"चलो ! काम-जेता महावीर के गुण गायें !!"
प्रकाश-पर्व : महावीर /91
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