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वह देनवते ही भा गई रथी से बात की
और उसे एक लानव स्वर्ण-मुटायें थमा गई उसे पाकन वह निहाल वसुमती ने किया सवाल “मुझे तो दासी का काम भी नहीं आता आपके घर क्या करना होगा माता ?"
गणिका बोली"वहाँ तुम सुनव से रहना तन कन नित्य अनेक पुरुष तुम पन न्यौछावन होंगे अमन बन कर"
बलात् घसीटे जाने पर वसुमती ने शोर मचाया तभी वहाँ कोट्याधिपति धनावह अया सुन कर वह करुण पुकार उसके हृदय में हाहाकार
उसने गणिका से कहा"इस बालिका को छोड़ दें आप और पुण्य कमायें” गणिका तमक कन बोली"मेनी एक लानव स्वर्ण मुढ़ायें ?"
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धनावह ने मुद्राओं-भना थैला गणिका को थमाया वसुमती को बचाया कहा"मैं अपने नि:सन्तान होने को रोता था मुझे क्या पता थाएक दिन में भी वात्सल्य से भर जाऊँगा तेरे जैसी सुशील बिटिया पाऊँगा"
प्रकाश-पर्व : महावीर /100
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