Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 123
________________ कि हमें मिल गई सन्तान पर एक तो लड़की ऊपर से सुन्दन और जवान जाने कब यह मेसी नवुशियाँ बीन ले मेरे पति को पुसलाकर मुड़ा से छीन लें एक दिन धनावह बाहर से आये चन्दना ने उनके हाथ धुलाये तभी मुंह पर आ पड़े उसके लम्बे बाल सेठ ने उन्हें सम्भाला और उसकी पीठ पर रख दिया तत्काल मूला ने देवा यह दृश्य ईर्ष्या बोली उसके भीतर से'मैं इसे बनाकर छोडूंगी अस्पृश्य यह चन्दना नहीं अंगना बनने की ताक में है यह कुलटा यहा रही तो मेरा सौभाग्य राव में है सेठ तीन दिन के लिये बाहर गया एक बार सेठानी तो खाये बैठी थी सवार उसने चन्दना के हाथ-पाँव हथकड़ी-बेड़ियों में जकड़े लम्बे-लम्बे बाल निर्ममता से पकड़े और काट दिये एक कपड़ा छोड़ा शेष सब वस्त्र-आभूषण उतार लिये अपशब्दों का गन्द उस पर उड़ेल दिया तलवर की अधेरी गुफा में उसे धकेल दिया नाला लगाया और पीहर चली गई प्रकाश-पर्व : महावीर /102 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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