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सम्पूर्ण सृष्टि के पुष्यों की मुदलता मिल जाये तो भी केसी हो मालायें नहीं बना सकती वैसा चन्द्रमा इस गगन में नहीं जाता इसका सूरज भी उतना तेजस्वी नहीं लगता मैंने देलवा जो ध्वज
कोई भी पताका नहीं लगती उसकी चरण-मज उस तरह का कलश भी कहीं नहीं पाया जाता वैसा पठ्म सनोवर इस धरा पर जगह नहीं बनाता उस समुद्र जैसी नहीं है किसी भी महासागर की पहचान मेरे अलावा और किसने देशवा होगा वेसा विमान
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प्रकाश-पर्व : महावीर /16
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