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'स्व' के योग में 'पर' का सहयोग कैसा
महावीर सम्मति थे अतिवीर थे वर्धमान थे परन्तु कर्मान ग्राम की सीमा पर जब ध्यानलीन हुए तो ध्यान थे केवल ध्यान
आत्मा के ध्यान को सुबह-दोपहर-शाम का कैसा बोध न किसी से लगाव न विरोध
ध्यान था अकेला गोधूलि की वेला एक किसान अपने बैलों को लेकर लौट रहा था आत्मा के ध्यान को देव उसने कहा था"भिक्षु ! सुनो मेला कहना मैं घर से लौट कर अभी आया तब तक मेरे बैलों को देनवते रहना"
आत्मा के ध्यान को भौतिकता क्यू कर रहती याद किसान लौटा मुर्त-भर बाद
लव कर हुआ परेशान बैलों का न कहीं नाम न निशान पूछा महावीर से"बैलों को ले गया कौन ?" महावीर मौन !
उसने रात-भर बैलों को खोजा ज्यों-ज्यों बैल नहीं मिले त्यों-त्यों लता गया मन पर मनों बोझा थक-ठान कर सुबह कर्मान लौटा
प्रकाश-पर्व : महावीर /69
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