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एक महावीर थे जिन्होंने हिंसा से पूर्णत: किया किनाना। आत्म-रक्षा के लिये भी भूनवे पशुओं को कभी नहीं मारा अन्य ऋषियों के दुर्वचन सहे वे ध्यानलीन थे ध्यानलीन ही रहे
पर ऋषि-समूह चुप नहीं रहा उनकी निरन्तर शिकायतें पा एक दिन कुलपति ने कहा"क्षत्रिय-पुत्र छोकर भी तुम गायों को नहीं भगाते
एक पछी भी अपना घोंसला बचाता है तुम क्यों नहीं बचाते ? ऋषि कहते हैंजो बचा न सके अपनी कुटीन वह कैसा महावीर !”
सोचा महावीर नेकुटिया की ही चिन्ता करनी थी तो ध्यान को आत्मा से क्यों जोड़ता राजभवन किस लिये छोड़ता साधना हेतु स्थान का चुनाव भी छल है इस आश्रम से अच्छा तो जगल है
वे आश्रम छोड़ बिना कुछ कठे बढ गये आगे इस प्रसंग से और अधिक
प्रकाश-पर्व : महावीर /74
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