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अब क्रोध व मद की विष धारा पागल हो कर बही
आवेश की कोई सीमा नहीं रही
चण्डकौशिक ने
महावीर के पाँवों में
अपने विषैले दाँतों का समूह
एक साथ गड़ाया परम आश्चर्य
पाँवों से खून की जगह दूध निकल आया
साधना ने जीवन में कैसा परिवर्तन किया
क्रोध की क्षमा
मान को विनम्रता
माया को सरलता
लोभ को त्याग
हिंसा को अहिंसा
कायरता को पराक्रम
निमर्मता को करुणा
और खून को दूध बना दिया
सच है
देह आत्मा को प्रभावित करती है
आत्मा
देह को
. समभाव बनी महावीर की देह
प्रकाश-पर्व : महावीर / 86
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