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वर्धमान ग्राम के पास बहती नदी का पानी सूनवकन कीचड़ बन गया था उसी कीचड में गाडियाँ स गई पसी तो ऐसी कि किसी भी तरह निकल नही पाई स्वामी की छूट पड़ी रुलाई
अतत: उस विपत्ति में उसने मुझे मित्र बनाया था तब उसके प्यार का कर्ज उतारने का दिन आया था
मैंने अपना साना बल अपने कंधों में संचित कर लिया पूरा जोर लगाया
और पहली गाड़ी को पार कर दिया फिर दूसरी फिर तीसरी यूं सब गाड़ियाँ निकाल दी स्वामी की बिगड़ती तबीयत संभाल दी
परिश्रम इतना लगा कि परिश्रम के छक्के छूट गये गाड़ियाँ तो निकल गई पर मेरे कंधे टूट गये स्वामी के होठों पर देनवी मुस्कान जान में आई जान टूटे कंधों में दर्द था बड़ा में निढाल हुआ और धरती पर गिर पड़ा
प्रकाश-पर्व : महावीर /79
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