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यह देनव स्वामी को अपार दु:नव हुआ उसने मुझे जगह-जगह से छुआ मैं उठ नहीं सकता था झुक नहीं सकता था मैं चल नहीं सकता था। और वह रुक नहीं सकता था
उसने ग्रामवासियों को इकट्ठा किया प्रभूत धन दिया कहा-'यह जो धरती पर लेटा है बैल नहीं है यह मेरा बेटा है इसकी करते रहना सार-संभाल हर तरह से रवते वरुना नख़याल
ये धन इतना है कि इसका महीनों तक नहीं होगा क्षय में अपने वत्स को साथ ले जाऊगा लौटते समय इसके बिना मेरा जीवन बना रहेगा सत्रास लो ! मेरा बेटा मेनी अमानत है तुम्हारे पास
गाँव वालों ने धन तो ले लिया पर मुझे एक बूंद पानी तक नहीं दिया भूनव-प्यास से तड़पता मैं पड़ा नहा धूप में अतत: मर गया
प्रकाश-पर्व : महावीर /80
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