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दूसनों से अभय पाओ !" यक्ष ने कहा-“भिक्षुक ! तुम्हें नहीं मुझे है प्रतिशोध का रोग क्षमा और अभय के योग्य नहीं इस गाँव के लोग
जब मैं बैल था पिछले जनम में तब इन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी सितम में में उसी के गिन-गिन कर बदले ले नठा हूँ इनके पापों के पल इन्हीं को दे रहा हूँ समझ सको तो समझो मेनी व्यथा सुनो मेनी अपार वेदना की कथा
मेना स्वामी धनदेव मुझे बड़ा प्यार करता था मैं भी उसी पर जीता था उसी पर मरता था उसने मुझे गाड़ी में कभी नहीं जोता था मुझे प्यार किये बिना उसे भोजन हजम नहीं होता था
एक बार वह पाँच सौ गाड़ियों में सामान भर व्यापार के लिये चला मैं भी गले की घंटियां बजाता साथ-साथ निकला
गरमी इतनी कि एक-एक जीव पसीने में सन गया था
प्रकाश-पर्व : महावीर /78
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