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इसका उत्तर दे सकता है कोन यक्ष भी मौन
महावीर ने दिया बोध"विरोध से कभी शाळत नहीं होता विरोध तुम प्रतिशोध की अग्नि पर मेत्री, करुणा, प्रेम व सहानुभूति का नीर बरसाओ
अमृत बाँटो अमृत पाओ
इस तरह इस जन्म में भी तुम कुछ सार्थक कर जाओगे गोम-गोम आनन्द से भर जाओगे।"
इतना सुनकर यक्ष नहीं रह सका नवड़ा तत्काल महावीर के चरणों में गिर पड़ा उसने अपनी मिथ्या धारणा को नवो दिया इस प्रकार झमा के अमृत ने क्रोध का मैल धो दिया ।
प्रकाश-पर्व : महावीर /82
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