Book Title: Tirthankar Mahavir
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication New Delhi

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Page 94
________________ Jain Education International काम के विजेता समभाव के प्रणेता साधना के सन्देश यान्ना करते-करते पहुँचे मोराक सन्निवेश वहाँ राजा सिद्धार्थ के मित्र ऋषि आश्रम के कुलपति दुइज्जत ऋषि ने उन्हें तत्काल पहचान लिया हर्षित मन से स्वागत किया आश्रम में ठहराया सुबह वे जाने लगे तो आग्रहपूर्वक उन से आगामी वर्षावास वहीं बिताने का वचन पाया महावीर पुनः आये अपना वचन साकार करने वर्षावास हेतु आश्रम में ठहरने तिनकों से बनी कुटिया में ठहरे प्रकाश-पर्व : महावीर / 73 ध्यान में उतर गये गहरे अन्य ऋषि देख कर हैरान For Personal & Private Use Only कभी न टूटने वाला यह कैसा ध्यान ! उन दिनों वहाँ बारिश कम हुई वनस्पतियाँ सूख गई थीं आश्रम के आस-पास का क्षेत्र विशेष रूप से था सूखे का मारा न मनुष्यों को पर्याप्त अन्न-जल न पशुओं को चारा कुटियों का घास-फूस खाते तो सभी ऋषि लाठियाँ लेकर उन्हें खदेड़ते दूर भगाते पशु भूख से छटपटाने लगे सूखे पत्ते तो क्या लकड़ी के टुकड़े तक चबाने लगे जब-जब वे आश्रम में www.jainelibrary.org

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