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देवेन्द्र ने किसान को सच्चाई बताई तो उसके मन में कठोरतम दण्ड की आशंका उमड़ आई तब महावीर का ध्यान-क्रम टूटा उनके दिये अभय से किसान का तनाव छूटा
देवेन्द्र बोले-“प्रभु ! आपका ध्यान अबाध हो इसलिए में आपकी सेवा में रहना चाहता हूँ मेरे मन की सीप में इसी आकांक्षा का मोती है
महावीर बोले"स्व' के योग में कोई सहयोग नहीं होगा आत्मा की साधना तो अकेले ही होती है।”
प्रकाश-पर्व : महावीर /71
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