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सन्मति
गर्व हुआ था उन जधाचरण-लब्धि-सम्पन्न मुनियों को जो महल की छत पर वर्धमान को ध्यान करते देलव उतर अये थे
अगमें के गूढ प्रश्नों और मन की जटिल शंकाओं का समाधान पा कर हर्षाये थे
पूछने के लिये जब उनके पास कुछ नहीं रहा था तब उछोंने ही पहली बार वर्धमान को 'सम्मति' कहा था।
प्रकाश पर्व : महावीर 41
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