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नन्दीवर्धन और सुदर्शना की अनुभूति
हमारा दिन वर्धमान के साथ बीते तो दिन है अन्यथा नहीं
हमानी मात वर्धमान को सुलाये तो बात है अन्यथा नहीं
पहले भी था हमारे पास खिलौनों का भण्डार पर माँ ने पहले कभी नहीं दिया ऐसे विलौने का उपहार
प्रकाश-पर्व : महावीर /42
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