________________
घढ़ रहा था सुमेक
छोड़ कर शमीन के सुनव छोड़ कर शीन के समस्त सम्बन्ध महावीर पढ़े आत्मा के आनन्द की ओर
परीषकों उपसर्गो को आमंत्रित करता साहस बढ़ रहा हो जैसे त्याग ने देह धानी हो संयम धढ रहा हो जैसे मुनित्व बढ़ रहा हो जैसे हवा बढ़ रही हो मुक्ति-गगन में अढ नठा हो जैसे भिक्षुत्व का सूर्य परम स्वतन्त्रता का आलोक लुटाता
अभिनन्दन स्वरूप इन्द्र ने जो डाला था वह देवदूष्य प्रसन्न था अपने सौभाग्य पर
हवायें
उड़ा नहीं पा नहीं थी उसे जकड़े था ऐसे वह प्रभु के कन्धे को
जंगल की धारणा टूट गई थी | कि केवल वैशाली के हैं महावीर सिष्ठन-सिहर जा रहे थे
प्रकाश-पर्व : महावीर /65
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org