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वर्धमान का
रोम-रोम कराह उठा
पोर पोर हो गया
अपने रक्त से रंजित आँखों में उमड़ आयी अहिंसा की नदी
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प्रकाश-पर्व: महावीर / 52
बुलवाया शिकारी को पकड़ लाये सेवक तत्काल
'चण्ड' नाम का गुलेलथानी बालक
सहम गया
बोले वर्धमान
" जैसे दर्द हो तो तुम्हारी सहनशीलता रोती है
वैसे ही चोट लगे तो पीड़ सब को एक जैसी होती है
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