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राग दीखता हुआ विराग
'वर्धमान बड़ हो गया' म ने सोचा ‘वर्धमान विवाह-योग्य हो गया पिता ने कहा'महासामन्त समनवीर की पुत्री यशोदा का प्रस्ताव स्वीकार हो' भाई जे उत्साह-सागर को थाम परामर्श दिया सोचाभोग के मल में भी कमल लिवल सकता है योग का यह भी दिलवा दिया जाय कर्मासक्त कुनिया को
वर्धमान ने जाना पहचाना सत्य समी का याद कियागर्भ में लिया संकल्प ....'कमी नहीं देगी दुःख यह देह उठे जिळोंने जन्म दिया' विवाह किया अक्षय ज्ञान-कोश दिया यशोदा को पुत्री प्रियदर्शना के साथ सहे संस्कार धर्म के
धर्म चाहे गृहस्थ में हो या सन्यास में धर्म तो धर्म का ही प्रसान करता है राग में भी विराग भरता है
प्रकाश-पर्व : महावीर /54
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