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अकार पोर-पोर टूटा समा मंग कर किसी तरह छूटा
सचमुच ! मेसी ईर्ष्या और मेसी शंका बेकार थे वर्धमान की प्रशंसा सुनकर जो देव चुप नछे वे नफुसक नहीं, समझदार थे
मेरे मन में अब भी उसके पौरूष की तसवीर है.
तुमने
प्रशंसा कम की थी इछ
वह
वर्धमान या वीर नहीं
वह तो महावीर है महा-वीर।
प्रकाश-पर्व : महावीर /38
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