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गर्भस्थ प्रभु का संकल्प
बहुत माँओं को
सुख-दुःख दिये हैं मैंने
बस !
अब और नहीं
राग-द्वेष के चक्कर में
अब और नहीं ही होना है भ्रष्ट
पर यह में क्या देख रहा हूँ
मेरे हिलने-डुलने से मेरी आखिरी माँ को भी कष्ट !
नहीं-नहीं
अब में नहीं हिलूंगा
माँ के गर्भ में
चुपचाप निवलूंगा
लो
मैंने बन्द कर दी हलचल
पर यह क्या
माँ अब भी विकल !
ठीक है माँ
विकलता अब तुझे कुछ नहीं कहेगी
मेरी हलचल जानी रहेगी.
प्रकाश पर्व : महावीर / 24
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