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पिता सिद्धार्थ की सम्वेदना
सुनो मठानानी ! अज दरबार में विठ्ठान नैमित्तिकों ने जो-जो बताया उस पर सहजता से नहीं होता विश्वास ट्रेलवो ! मेले एक-एक मोम से छलकता उल्लास
हमारे भाग्य में सम्पूर्ण सृष्टि को दुर्लभ सेवा है तुमने सपने नहीं मातृत्व का परम सौभाग्य देलवा है तुम जितनी अनन्य हो उस से भी अधिक धव्य हो त्रिशला मैंने सुना तो झूम उठे धरती-असम लगा कि मैं राजा क्यों बना क्यों नहीं बना तुम जैसी माँ !
प्रकाश-पर्व : महावीर /18
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