Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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पृष्ठसंख्या
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पृष्ठसंख्या | सूत्र
पृष्ठसंख्या | सूत्र प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशास्तद्विधयः उ ८१७
भ
मतिश्रु तयोनिबंधो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु प ४०८ प्रत्यक्षमन्यत्
पू २५६ | भरतस्य विष्कमो जंबूद्वीपस्यनवति- मतिश्रु तावधिमनःपर्ययकेवलानां उ ८३६ प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्ध
शतभागः
पू ९२२ मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानं पू २१२ विष्कंभो हद
पू ८८६ | भरतैरावतयोवृद्धिासौ षट्समया- मतिःस्मृतिःसज्ञाचिंतामिनिबोप्रदेशसहारविसर्पाभ्या प्रदीपवत् उ १६१ | भ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्यां पू ६१६ | धइत्यनर्थातरं
पू २८२ प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तेजसात् पू ७२७ | भरतहैमवतहरिविदेहकरम्यकहरण्यव- मनोज्ञामनोज्ञेद्रियविषयरागद्वेषवर्जप्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा पू ६५८ | तैरावतवर्षाः क्षेत्राणि
नानि पंच प्रमाणनयैरधिगम पू १५२ भरतैरावतविदेहाः कर्मभुमयो
माया तैर्यग्योनस्य प्राग्वेयकेभ्यः कल्पा पू १११३ | ऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरुभ्य पू ६६२ | मारणातिकी सल्लेखना जोषिता उ प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः प ६३६ | भग्त. षड्विंशतिपंचयोजनशतविस्तारा । मार्गाच्यवननिर्जराथं परिषोढव्याः प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वा
षटकोनविंशतिभागा योजनस्य पू ६१३ | परीपहाः ध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरं उ १०८४ भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्नि. मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगावातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमासः पू१०१५
उ७८७ बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तध्रु वाणा भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां पू ३७६ / मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रिसेतराणा पू ३०५ | भबनेषु च
यान्यासापहारसाकारमंत्रभेदाः उ ७४५ वहारंभपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः उ ५८४ | भूतब्रत्यनुकंपादातसरागसंयमादि
मूर्छा परिग्रहः बंधहेत्वभावनिर्जराम्या कृत्स्नकर्म
योगः क्षाति: शौचमिति सद्यस्य उ ५६२ | मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके पू१०२६ विप्रमोक्षो मोक्षः
भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः उ ३६१ मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थानि च बंधवधच्छेदातिभारारोपणानपान
भेदसघातेभ्यः उत्पद्यते उ ३८८ | सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनयेषु उ ६५१ निरोधा
उ ७४३ भेदादणुः
मैथुनमब्रह्म
उ६७६ र बंधेधिको पारिणामिको च
मोहक्षयाज्ज्ञानदशनावरणांतरायक्षयाञ्च उ ४१८ | मणिविचित्रपार्था उपरिमूले च
केवलं
उ १९८४ बाह्याभ्यंतरोपध्यो.
उ १११० तुल्यविस्ताराः ब्रह्मलोकालया लौकातिकाः
पू १११७ | मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च पू ४२६ | योगवक्रताविसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः उ ५९६
पू ११४०
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