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मुद्रालयके और दृष्टि दोपके कारणसें जो भूल रहगईहै उसका सूक्ष्म शुद्धिपत्रक ग्रंथ में दाखल किया है. फिर भी कोई भूल रह गई होतो सुज्ञ पाठक वर्गसें प्रार्थना है कि सुधारके बांचे. ____ सस्ती किंमतमें ग्रंथको प्रसिद्ध करानेके वास्ते जिन महाशयोंने मदद दीहै उनकी तस्वीर वगैरेह इस ग्रंथमें प्रसिद्ध कर्ताने उन महाशयोंकी केवल कदर बुजनेको प्रसिद्ध साधु, अग्रेसरी धके जानकर जैन बंधु भोकी संमति लेकर दाखल किये हैं. मेरेपास ऐसी सम्मति मोजूद होते हुए भी चंद जैनबंधुआने गृहस्थोंकी तस्वीर वगैरेह दाखल करने में विरुद्ध उठायाथा. अगर यह बात ग्रंथ प्रसिद्धकतोकी मरजीकी थी, परंतु किसीको पुस्तकका अंतराय न होवे इस लिये मैं तीन तरहके पुस्तक बंधवाये है. (१) मूल ग्रंथ, प्रस्तावना, जन्म चरित्र और तस्वीर दाखल किया हुवा, संपूर्ण ग्रंथ; (२) और ग्रंथकर्ताकी तस्वीर और मूल ग्रंथ; (३) और पस्तावना, ग्रंथकर्ताका नन्न चरित्र, साधु की तस्वीरें, गृहस्थों की तस्वीरें और टुक वृत्तांतका अलग ग्रंथ. किमत सबकी एकही पडेगी, जीनको जैसा चाहे वैसा मंगवा लेवे. कितनेक ग्राहकोंका यह आग्रह है कि हमको तो संपूर्ण ग्रंथ साथही चाहिये इस लिये किसीका दील दःखी न होवे, ऐसा रस्ता नीकालके उपर मुजिब मैंने व्यवस्था की है. पुस्तक प्रसिद्ध होनेमें ढील होनेसें जो ज्ञानांतराय हुग है उसकी मैं क्षमा चाहकर आखिर कहताहूं कि इस पुस्तककी शोधनमें, इसकी उमदा हस्ताक्षरसें नकल करनेमें, प्रस्तावना लीखने में, और प्रूफ वगैरह सुधारनेमें जो किमती सहायता देके श्रीमद विजयानंदसूरिश्वरके जेष्ठ शिष्य श्रीमान् पंडित श्री लक्ष्मीविजय के शिष्य श्रीमान् श्रीहर्षविजयजीके शिष्य मुनि श्रीवल्लभविजयजीने जो परिश्रम उठाया है उनको और पंडीतजी अमीचंद जीको मैं धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने गुरु भक्ति और धर्मसेवा निमित्त जैनधर्म और उसके अनुयायी उपर अमूल्य उपकार किये हैं.
श्रीमद् विजयानंदमूगि (आत्मारामजी) महाराजके पाटपर श्रीमद् कमलविजय सूरि महाराज विराजशन हुवे, उनकी और इस ग्रंथको उपर लिखी मदद देनेवाले मुनिश्री वल्लभ विजय की तसीरें दाखल करानेको भी बहुत महाशयोंने जोर दिया, वे तस्वीरें भी उन्हों की आज्ञा नही होते हुवे भी केवल धर्म सेवा और ग्राहकोंकी तीव्र जीज्ञासाको तृप्त करनेको दाखल की है जिसकी मैं क्षमा चहाता हुं.
यह ग्रंथ कायदे माफक रजीस्टर करवाया है, और सर्व हक्क प्रसिद्ध कर्त्ताने अपने स्वाधिन रखा है.
सर्वको आनंद सुख प्राप्त हो. तथास्तु ! ! !
दासानुदास, अमरचंद पी० परमार.
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