________________
आचार्य हरिभद्रसूरि प्रणीत उपदेशपद : एक अध्ययन : १३ • कथा-साहित्य के अन्तर्गत आचार्य हरिभद्र ने एक ओर समराइच्चकहा
जैसा बड़ा धर्मकथा-ग्रन्थ लिखा वहीं व्यंग्य प्रधान धूर्ताख्यान जैसा कथा ग्रन्थ भी लिखा। इतना ही नहीं इन्होंने जैनागम ग्रन्थों की टीकाओं में से दशवैकालिक टीका में लगभग तीस तथा उपदेशपद नामक स्वतंत्र ग्रन्थ में लगभग सत्तर प्राकृत कथायें दी हैं। वस्तुत: आगमों का टीका साहित्य कथाओं तथा दृष्टान्तों का अक्षय भण्डार है। ये टीकायें संस्कृत में होने पर भी इनका कथाभाग प्राकृत में ही उपलब्ध है। उपदेशपद
'उपदेशपद' जैसे महान् ग्रन्थ के माध्यम से अनेक विषयों के साथ ही अनेक लघुकथायें लिखकर आचार्य हरिभद्रसूरि ने प्राकृत कथा साहित्य की श्रीवृद्धि में योग दिया है। 'उपदेशपद'३ धर्मकथा अनुयोग के अन्तर्गत प्राकृत आर्या छन्द की १०४० गाथाओं में रचित एक अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। किन्तु इसका अभी तक हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ है। यदि ऐसा हो जाये तो शोधकर्ताओं को इसके विविध प्रकार से अध्ययन में बहुत सहयोग मिलेगा। ___टीका ग्रन्थ - उपदेशपद एक ऐसा लोकप्रिय एवं शिक्षाप्रद कथा ग्रन्थ है जिससे आकृष्ट होकर अनेक आचार्यों ने टीकायें लिखीं हैं।
१. सुखसम्बोधिनी टीका एवं इसके टीकाकार : उपदेशपद पर सबसे अधिक लोकप्रिय टीका तार्किक शिरोमणि आचार्य मुनिचन्द्रसूरि द्वारा लिखित सुखसम्बोधिनी टीका है। १४५०० ( चौदह हजार पाँच सौ) श्लोक प्रमाण यह बृहद्काय टीका जैन महाराष्ट्री प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में पद्य तथा गद्य रूप में लिखी गई है जो अनेक दृष्टान्तों, आख्यानों, सुभाषितों एवं सूक्तियों से भरपूर है। इसमें अनेक सुभाषित अपभ्रंश भाषा में भी हैं। इस टीका की रचना विक्रम संवत् ११७४ में “अणहिल्ल पाटण' नामक नगर में मुनिचन्द्रसूरि ने की। इन्होंने उपदेशपद में सांकेतिक तथा पूर्णकथाओं को प्राकृत भाषा में तथा कहीं-कहीं प्राकृत शब्दों का संस्कृत अर्थ रूप में सन्दर्भ जोड़कर पर्याप्त विस्तृत किया है।
मुनिचन्द्रसूरि यशोभद्रसूरि के शिष्य तथा वादिदेवसूरि (स्याद्वादरत्नाकर के कर्ता) एवं अजितदेवसूरि के गुरु थे। आनन्दसूरि तथा चन्द्रप्रभसूरि इनके गुरु भाई थे। मुनिचन्द्रसूरि उच्चकोटि के विद्वान् थे। उपदेशपद पर सुखसम्बोधिनी टीका के अतिरिक्त इन्होंने अनेक मौलिक एवं टीका ग्रन्थों की रचना की है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org