Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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कर्म-साहित्य में तीर्थङ्कर : २५
२४.(अ) पंचम कर्मग्रन्थ, गाथा ४२.
(आ) तित्थयरनामस्स उक्कोसठिई मणुस्सो असंजाओ वेयगसम्मद्दिट्ठी पुव्वं नरगबद्धउगो नरगाभिमुहो मिच्छत्तं पडिवज्जिही इति अंतिमे ठिईबंधे वट्टमाणो बंधइ, तब्बंधगेसु अइसंकिलिट्ठो त्ति काउं। - पंचसंग्रह, प्रथमभाग, मलयगिरि
टीका
२५.तित्थरबंधस्स णिरय-तिरिक्खगइबंधेहि सह विरोहादो। - धवला ८.३,
३८.७४.५ २६. कप्पित्थीसु ण तित्थं। - गोम्मटसार 'कर्मकाण्ड', गाथा ११२. २७. पारद्धतित्थयरबंधभवादो तदियभवे तित्थयरसंतकम्मियजीवाणं। मोक्खगमणणियमादो।
- धवला ८.३, ३८/७४/८, ३८/७५/१ २८.(अ) विशेषणवती, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, गाथा ७८.
(आ) बज्झई तं तु भगवओ तइयभवोसक्कइत्ताणं। - आवश्यकनियुक्ति, १८३. २९. द्रष्टव्य - महाबन्ध, प्रथम भाग, कालप्ररूपणा - पृ० ६३ (भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन) ३०. कालमासे कालं किच्चा तच्चाए बालुयप्पभाए पुढवीरए उज्जलिए
नरए नेरइयत्ताये उववज्जिहिसि। ----- आगमेसाए उस्सप्पिणीए ------ बारसमे अममे णामं अरहा भविस्ससि। - अंतगडदसासूत्र, वर्ग ५ (उज्ज्वल नरक में
नील लेश्या ही है।) ३१. महाबन्य, प्रथम भाग, पृ० १७७. ३२. स्त्रीषण्ठवेदयोरपि तीर्थाहारकबन्धो न विरुध्यते उदयस्यैव पुंवेदिषु नियमात्।
- गोम्मटसार 'कर्मकाण्ड', जीवतत्त्वप्रदीपिका टीका, गाथा-११९ ३३. आगम में इसे एक आश्चर्य माना गया है। द्रष्टव्य - स्थानाङ्गसूत्र, स्थान १०. ३४. द्रष्टव्य, दूसरा कर्मग्रन्थ, सत्ता-विचार ३५. द्रष्टव्य, उपर्युक्त २१वाँ पाद टिप्पण। ३६.पंचम कर्मग्रन्थ, गाथा ३३.
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