Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 121
________________ गाहा : जह जह ते भिल्ल-नरा देंति पहारे दढं दया-हीणा । धणदेवो उण तह तह अब्भसिय-कलो पवंचेइ ॥३०॥ छाया : यथा यथा ते भिल्ल-नरा ददति प्रहारान् छढं दया-हीनाः । धनदेवः पुनस्तथा तथा अभ्यस्त कलः प्रवञ्चति ॥३०॥ अर्थ :- जेम जेम ते दयावगरना भीलना माणसो हठ प्रहार देवा लाग्या तेम, तेम धनदेव पण पोतानी जाणेली कला बताववा लाग्यो. हिन्दी अनुवाद :- दयाहीन भिल्लजन जैसे जैसे दृढ़प्रहार करने लगे वैसे वैसे धनदेव भी अपनी कला दिखाने लगा। गाहा : अविय फरएण केविहु इओ तओ केवि काय-करणेणं । केवि हु दूराउच्चिय एंते खग्गाभिधारण ।।३१।। छाया : अपि च स्फरकेन केऽपि खलु इतस्ततः केऽपि काय-करणेन । केऽपि खलु दूरादेव खड्गाभिघातेन ॥३१॥ अर्थ :- वळी कोईकने फरक नामना अस्त्रवड़े तो वळी कोईकने कायानी क्रियावड़े अने कोइकने वळी (अस्त्र) दूरथी खड्गना घातवड़े. हिन्दी अनुवाद :- और किसी को फरक नाम के अस्त्र से तो किसी को काया की क्रिया से तो किसी को दूर से ही खड्ग के घातद्वारा। गाहा : कहकहवि हु भिल्लेहिं गहिओ फरएहिं उट्ठहेऊण । भणियं च तेहिं रे ! रे ! एसो सत्थाहिवो वणिओ ॥३२।। छाया: कथं कथमपि खलु भिल्लैः गृहीतः स्फरकैः । भणितं च तैः रे ! रे ! एष: सार्थाधिपः वणिकः ॥३२॥ अर्थ :- गमे ते रीते भिल्लोवड़े अस्त्रविशेषवड़े ग्रहण करायो अने तेओ वड़े कहेवायो के अरे रे ! आज वाणीयो सार्थनो मालिक छे. हिन्दी अनुवाद :- किसी भी प्रकार से भिल्लों ने अस्त्रविशेष ग्रहण किया और उन्हीं के द्वास कहा गया कि अरे ! यही सार्थ का नायक है। गाहा : ता बंधिऊण एयं अक्खय-देहं तु पल्लि-नाहस्स । अप्येमो जेणेसो देइ वणिओ घणं बहुयं ।।३३।। छाया: तस्मात् बद्धवा एत-मक्षत-देहं तु पल्लिनाथाय । अर्पयामः येनेषः ददाति वणिक् धनं बहुकम् ॥३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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