Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 129
________________ गाहा: अब्भंगिऊण विहिणा सुगंध-तेल्लेहिं पवर-जुवईहिं । अद्धाण-परिस्सम नासगेण वर-वारिणा न्हविओ ।।५८॥ छाया : अभ्यंग्य विधिना सुगंध तैलैः प्रवर-युवतिभिः । अध्वान-परिश्रम-नाशकेन वर-वारिणा स्नापितः ॥५४॥ अर्थ :- श्रेष्ठ युवतिओओ सुगंधि तेलवड़े विधिपूर्वक अभ्यंगन करीने (मालीसकरीने) मार्गना परिश्रमने दूर करे तेवा श्रेष्ठ पाणी वड़े स्नान कराव्यु। हिन्दी अनुवाद :- श्रेष्ठ युवतियों ने सुगंधित तेल से विधिपूर्वक अभ्यंग करके मार्ग के परिश्रम को दूर करे, ऐसे श्रेष्ठ पानी से स्नान कराया। गाहा : घणसार-सार-सिरिखंड-चच्चिओ ताहे पल्लि-नाहेण । सहिओ पवराहारं भोत्तूण समुट्ठिओ कमसो ॥५९।। छाया:, घनसार-श्रीखण्ड-चर्चितस्ततः पल्लिनाथेन । सहितः प्रवराहारं भोतुं समुत्थितः क्रमशः ||५९॥ अर्थ :- त्यारपछी पल्ली-पति वड़े कपूर-चंदन वडे (विलेपन) करायु पछी श्रेष्ठ भोजन जमवा माटे क्रमशः उपस्थित थया। हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् पल्लिपति द्वारा कपूर-चंदनादि द्वारा विलेपन किया गया फिर श्रेष्ठ भोजन जीमने के लिए क्रमशः उपस्थित हुआ। गाहा: कप्पूर-पूर-सहिए तंबोले आयरेण से दिने । वज्जरई धणदेवो सुहासणत्थो इमं वयणं ।।६०॥ छाया : कर्पूर-पूर-सहिते ताम्बूले आदरेण तस्य दत्ते । कथयति धनदेवः सुखासनस्थः इदं वचनम् ||६०॥ अर्थ :- आदरपूर्वक कर्पूरादि मसालावाळु तांबूल (पान) आपे छते सुखासन पर बेठेला धनदेवे आ प्रमाणे का। हिन्दी अनुवाद :- अब आदरपूर्वक कर्पूरादि मिश्रित तांबूल (पान) देने पर सुखासन पर बैठे हुए धनदेव ने इस प्रकार कहा। क्रमशः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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