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हिन्दी अनुवाद :- इतने ही प्रमाण में धन्य हूँ कि - ऐसे महात्मा के अक्षत देह का दर्शन जल्दी हुआ। गाहा :
जइ पुण होज्ज विवत्ती समयं भिल्लेहिं जुज्झमाणस्स ।
ता कह मज्झ अउन्नस्स होज्ज पावस्स नित्थारो? ॥५१॥ छाया:
यदि पुनः भवेत् विपतिःसमकं भिल्लैः युध्यमानस्य ।
तर्हि कथं ममापुण्यस्य भवेत् पापस्य निस्तारः ॥५१॥ अर्थ :- जो भिल्लोनी साथे युद्ध करता, धनदेवनो विनाश थइ गयो होत तो पापात्मा एवो मारा पापथी निस्तार केवी रीते थात ! हिन्दी अनुवाद :- यदि भिल्लों के साथ युद्ध करते धनदेव का विनाश हो गया होता तो मैं इस पाप से कैसे मुक्त हो सकता था? गाहा :
एमाइ बहु-विगप्पं अप्पाणं निंदिऊण तो भणइ । भो ! भो ! भिल्ला ! सत्थे जं गहियं एत्थ तुम्हेहिं ॥५२।। तं सव्वंपि समप्पह इमस्स धणदेव-नाम-वणियस्स ।
तेहिं तण-मज्जायं समप्पियं तस्स तं सव्वं ।।५३।। छाया:
एवमादि बहु-विकल्पेन आत्मानं निंदित्वा ततो भणति । भो ! भो ! भिल्ला ! साथै यद् गृहीतं अत्र युष्माभिः ॥५२॥ तद् सर्वमपि समर्पयत एतस्य धनदेव-नाम-वणिजः ।
तैः तृण-मर्यादं समर्पितं तस्मै तं सर्वम् ॥५३॥ अर्थ :- इत्यादि घणा प्रकारे आत्मानी निंदा करीने त्यारपछी पल्लिपतिए का'अरे भिल्लो ! तमारा बड़े अहीं सार्थमांथी जे ग्रहण करायु होय, ते समस्त आ धनदेव नामना वणिक्ने सोंपी दो .... त्यारे भिल्लो वड़े तृण जेटलं पण माल पाछो अपायो। हिन्दी अनुवाद :- इत्यादि बहुत प्रकार से आत्म निंदा करके फिर पल्लिपति ने कहा-'अरे भिल्लों ! तुम्हारे द्वारा सार्थ में से जो भी वस्तुएं ली गई हों वे सब इधर धनदेव वणिक् को दे दो... तब भिल्लों द्वारा तृण जितना भी माल वापस दिया गया। गाहा :
तत्तो स-बाल-वुड्ढे मिलिए लोगम्मि भय-विमुक्कम्मि । वज्जरइ सुप्पइट्ठो धणदेवं नेह-गव्भमिणं ।।५४।।
छाया:
ततः स-बाल-वृद्धे-मिलिते लोके भय-विमुक्के । कथयति सुप्ततिष्ठो धनदेवं स्नेह-गर्भमिदम् ।।५४॥
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