Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 125
________________ हिन्दी अनुवाद :- निश्चय ही पापी पर किया हुआ उपकार भी अपकार का फल देनेवाला रहता है, जैसे सर्प को दिया हुआ दूध भी जहर बन जाता है। गाहा : पावो अहं कयग्यो सुय-जीविय-दायगस्स जेणज्ज । गिहमागयस्स एवं अहम्म-कम्मं समाचरियं ॥४४।। छाया: पापोऽहं कृतघ्नः सुत-जीवित-दायकस्य येनाधे । गृहमागतस्य एतं अधर्म-कर्म-समाचरितं ॥४४॥ अर्थ :- वळी हुं केवो पापी अने कृतघ्नी छु के पुत्रना जीवनदाता के जे आजे घटे आवेला तेना प्रति मे केवु अधर्मरूप आचरण कर्तु! हिन्दी अनुवाद :- फिर, मैं कैसा पापी और कृतघ्नी हूं कि - पुत्र को जीवित अर्पण करनेवाले अतिथि के सहसा घर पर आने पर भी मैंने उन पर कितना अधर्म किया। गाहा : भणियं घणदेवेणं कीस इमं वहह गुरु-विसायंति । अन्नाणं अवरज्झइ को दोसो एत्थ तुम्हाणं ॥४५।। छाया: भणिनं धनदेवेन कस्मादिदं वहत गुरु-विषादमिति । अतानमपराध्यति को दोषोऽत्र तव ? ||४५॥ अर्थ :- त्यारे धनदेवे का के तमे शा माटे आटलो बधो विषाद धारण करो छो? आ तो अज्ञाननो अपराध छे, तेमां तमारो शो दोष छे ? हिन्दी अनुवाद :- तब धनदेव ने कहा कि तुम क्यों इतना विषाद करते हो? यह तो अज्ञानता का अपराध है, उसमें आपका क्या दोष है ? गाहा : ददर्छ अणन्न-सरिसं भिल्ल-वई तस्स वयण-विन्नाणं । रूवं तह सुयणत्तं पुणोवि अइरंजिओ भणइ ।।४६।। छाया : दृष्ट्वा अनन्य-सदृशं भिल्ल-पतिस्तस्य वचन-विज्ञानम् । रूपं तथा सुजनत्वं पुनरपि अतिरञ्जितो भणति ॥४६॥ अर्थ :- पल्लिपति धनदेवनां असाधारण मुखनां भावो रूप तथा सज्जनता जोइने अति खुश थयेलो फरी कहेवा लाग्यो. हिन्दी अनुवाद :- पल्लिपति धनदेव के मुख के असाधारण भाव एवं सज्जनता देखकर अति हर्षित होते हुए कहने लगा - गाहा: पेच्छह एगम्मि नरे केत्तिय-गुण-समुदओ समं वसइ ? । बहु-रयणा हु वसुमई सच्चो लोय-प्यवाओऽयं ॥४७॥ 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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