Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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छाया :
ततो विहितः प्रमाणस्तत्कालमुचिते आशने दत्ते । पार्श्व-स्थितपुरुषैरूपाविष्टः
धनदेवो ॥४०॥
अर्थ :- त्यार बाद पासे रहेला पुरुषो बड़े ते काळने उचित आसन अपाये छते करेला प्रणामवाळो धनदेव त्यां बेठो.
हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् पास रहे पुरुषों द्वारा दिये गये उचित आसन पर प्रणामपूर्वक धनदेव वहाँ बैठा।
गाहा :
छाया :
तत्तो य दीह दीहं नीससीय विसाय-गष्भिणं लज्जावणमिय- वयणो पल्लि - वई
ततश्च दीर्घ-दीर्घ निःश्वास्य विशाद-गर्भितमेवम् । लज्जावनमित- वदनः पल्लिपती भणितुमारब्धः ॥४१॥
अर्थ :- फिर पछी खूब लांबा नीसासा नांखीने अने लज्जाथी नमेला मुखवाळा विषादयुक्त पल्लीपतिए आ प्रमाणे कहेवानी प्रारंभ कर्यो !
छाया :
हिन्दी अनुवाद :- फिर खूब लंबी निःश्वास लेकर विषादयुक्त लज्जा से नमित मुखवाले पल्लिपति ने इस प्रकार कहना प्रारंभ किया
गाहा :
एवं भणिउमाढतो ।। ४१॥
परवगारिति तुमं उवेच्च किल होसि अम्ह दट्ठव्वो । नवरं गिहागयस्सवि सागयमेवंविहं विहियं ॥ ४२ ॥ |
परमोपकारीति त्वामुपेत्य किल भवसि अस्मभ्यं दृष्टव्यः । नवरं गृहागतस्यापि स्वागतमेवंविधं विहितम् ॥४२॥ अर्थ :- घरे आवेला एवा तमारुं स्वागत अमाराबड़े करायुं तो परम उपकारी एवा तमने पामीने अमे तमने शुं मोठं बतावीए ?
हिन्दी अनुवाद :- परमोपकारी गृहांगन में आए हुए आपको पाकर इस प्रकार आपका स्वागत किया गया अब हम अपना मुख भी आपको कैसे दिखायें ?
गाहा :
छाया :
जायइ अवगार - फलो विहिओ पावाणं अहव उवयारो । जहा दिन्नं दुर्द्धपि वित्तणमुवे ||४३ ॥
सप्पस्स
जायते अपकार-फलो विहितः पापानां अथवा उपकारः । सर्पस्य यथा दत्तं दुग्धमपि विषत्वमुपैति ॥ ४३ ॥ अर्थ :- खरेखर पापीओ उपर करेलो उपकार पण अपकारना फळवाळो थाय
छे, जेम सांपने आपेलु दूध पण झेर बनी जाय छे.
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