Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 119
________________ गाहा : रे ! रे ! पावा ! जइ अस्थि तुम्ह इह कावि दथ-कंडूई । ता हवह मज्झ पुरओ सहसा तं जेण अवणेमि ।।२३।। छाया: रे ! रे ! पापा : ! यद्यस्ति युष्माकमिह कापि दर्प-कण्डूतिः । ततः भवत मम पुरतः सहसा तद् येन अपनयामि ॥२३॥ अर्थ :- रे ! रे ! पापीओ ! जो तमने कोई पण प्रकारे अहंकारनी खुजली आवती होय तो मारी सामे आवो हुं तमारी खणज ने दूर करी दउं. हिन्दी अनुवाद :- रे ! रे ! पापिष्ठ ! यदि तुम को किसी प्रकार से अहंकार की खुजली आती हो तो मेरे सामने आओ मैं तुम्हारी खुजली को दूर करूंगा। गाहा : मा भणह जं न भणियं एस कस-वट्टओ सुपुरिसाण । न हि निय-जुवइ सलहिया पुरिसा पुरिसत्तणमुवेति ।।२४।। छाया: 'मा भणत यद् न भणितं एष कषपट्टकः सुपुरुषाणाम् । . न हि निज युवति-शलाधिताः पुरुषाः पुरुषत्वमुपयन्ति ॥२४॥ अर्थ :- पछी एम नहीं कहेतां के मने का न हतुं खरेखर पुरुषोनी तो आ कसोटी छे. मात्र पोतानी पत्नीथी प्रसंसीत करायेला पुरुषो पुरुषत्व प्राप्त करतां नथी. हिन्दी अनुवाद :- फिर ऐसा मत कहना कि मुझे कहा नहीं था, वीर पुरुषों की यह तो कसौटी है, सिर्फ अपनी पत्नी से प्रशंसित पुरुष पुरुषत्व प्राप्त नहीं करते हैं। गाहा : हा! धी! धी! एयस्स उरे ! दुट्ठा ! तुम्ह पुरिसगारस्स । नासंत-लोय-पट्टी-धावण-उवलद्ध-पसरस्स ॥२५॥ छाया:हा ! धिक् ! धिक् ! एतस्य तु रे ! दुष्टाः युष्माकं पुरुषकारस्य । नश्यत् - लोक-पृष्ठ-धावलुपलब्ध प्रसारस्य ।।२५॥ अर्थ :- अरे ! धिक्कार छे ! धिक्कार छ ! अरे दुष्टो ! नासता लोकनी पाछळ दोडवाथी प्राप्त थयेला विस्तारवाळा तमारा आवा प्रकारनां पुरुषत्वने धिक्कार हो. हिन्दी अनुवाद :- अरे ! धिक्कार हो ! धिक्कार हो ! अरे दुष्टों ! भागते हुए लोगों के पीछे दौड़ने से तुम्हारे इस प्रकार के पुरुषत्व को भी धिक्कार हो ! गाहा : एवं च निसामित्ता दोच्चं तच्चं समुल्लवंत्तस्स । धणदेवस्सुल्लावे सुहडाणवि भूरि-भय-जणगे ।।२६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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