Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 118
________________ हिन्दी अनुवाद :- जो लोग ईंधनादि लेने को सार्थ से दूर गये थे वे भी कोलाहल के शब्द सुनकर सार्थ से और भी दूर चले गये। गाहा : छाया : रे ! लेह हणह बंधह मारह वयणाई भरह सुम्मति तत्थ सत्थे दिसि दिसि एवंविहा रे ! लात हत बध्नीत मारयत वचनानि भरत धूलया । श्रूयन्ते तत्र सार्थे दिशि दिशि एवंविधा शब्दाः ॥२०॥ अर्थ :- अरे पकड़ो हणो (मारो) बांधो धूळवडे भरो, आपा पयनो, त्यां सार्थमां दशे दिशामां (आवा शब्दो) संभळापका लाग्या. छाया : हिन्दी अनुवाद :- अरे रे ! पकड़ो, मारो, बांध दो, मिट्टी से भर दो, वहां ऐसे वचन सार्थ में दशों दिशाओं से सुनाई देने लगे। गाहा : छाया : धूलीए । सद्दा ||२०|| एयावसरम्मि तओ पासित्तु इओ तओ विलुम्पतं । भिल्लेहिं सत्थ-लोयं कइवय-निय - पुरिस- परियरिओ ||२१|| एतदवसरे ततः दृष्ट्वा इतस्ततः विलुम्पन्तम् । भिल्लेभ्यः सार्थ - लोकं कतिपय निज - पुरुष - परिवृत्तः ॥२१॥ हिन्दी अनुवाद :- उस समय इधर उधर दौड़ते हुए भिल्लों को देखकर अपने चुनंदे मनुष्यों के साथ खड्गयुक्त हाथवाला गाहा : उप्पाएंतो तेसिं आगिईए चेव चित्त - संखोहं । वसुनंदय-खग्ग-करो धणदेवो एवमुल्लवइ ।। २२ ।। उत्पादयन् तेभ्यः आकृत्या एव चित्त-संक्षोभम् । वसुनन्दक-खड्ग-करो धनदेव एवमुल्लपति ॥२२॥- युग्मम् अर्थ :- एटली वारमां त्यां आमतेम नासता भिल्लोनी साथै सार्थना लोकोने जोड़ने पोताना केटलाक माणसोनी साथे घेरायेलो वसुनंदक नामना खड्ग (तलवार) युक्त हाथवाळो अने आकृतिथी ज तेओने चित्तमां क्षोभं उत्पन्न करतो एवो धनदेव आ प्रमाणे बोलवा लाग्यो. 1 हिन्दी अनुवाद और देखने मात्र से भयंकर आकृतिवाला, चित्त में भय उत्पन्न करनेवाला वसुनंदक खड्गयुक्त धनदेव इस तरह बोलने लगा। Jain Education International 6 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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