Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 116
________________ अर्थ :- हे ! हे ! पिशाचो ! अत्यारे तमे क्याथी नजरे आवी पडया ? खसी जाव, तमारामां जो ताकात होय तो ते सर्व प्रकट करो. हिन्दी अनुवाद :- हे ! हे ! पिशाचों ! अभी तुम कहाँ से यहाँ आ गए। चले जाओ, तुम्हारे में जो भी शक्ति है उस शक्ति को प्रगट करो। गाहा : केवि पुण भीरु-हियया वरया दसण-उड-गहिय-अंगुलिणो । हा! हा! रक्खह रक्खह एवं कलुणाई जंपंति ।।१३।। छाया : केऽपि पुनः भीरुहृदयाः वरका दशन-पुट गृहिताङ्कलयः । हा ! हा! रक्षत ! रक्षत एवं करुणानि जल्पन्ति ।।१३।। "अर्थ :- केटलाक डरपोक हृदयवाळा गरीबड़ा मुखनी अंदर मुकेली आंगळीवाळा हा-हा अमारू रक्षण करो, रक्षण करो ए प्रमाणे करुण विलाप करता हता। हिन्दी अनुवाद :- कितने डरपोक हृदयवाले गरीब, मुख के अंदर अंगुली रखकर हा-हा-हमारा रक्षण कीजिए, रक्षण कीजिए इस तरह करुण विलाप करने लगे। गाहा: के वि हु लुटिज्जंता इओ तओ तह पहम्ममाणा य । कीवा पलायणट्टा तत्थ गवेसंति छिद्दाणि ।।१४।। छाया: केऽपि खलु लुण्टयमाना इतस्ततः तथा प्रहण्यमानाश्च । क्लीबाः पलायनार्थ तत्र गवेषयन्ति छिद्राणि ||१४|| अर्थ :- केटलाक आ प्रमाणे लुटाता अने हणाता नपुंसको जेवा अहीं तहीं भागवामाटे त्यां रस्तो शोधता हता. हिन्दी अनुवाद :- कितने ही लोग नपुंसक जैसे इधर-उधर भागने के लिए रास्ता खोजने लगे। गाहा : केवि कहकहवि पाविय-छिद्दागाढं च खसफसेमाणा। सणियं सणियं ओसक्किऊण लीयंति गहणेसु ।।१५।। छाया: केऽपि कथंकथमपि प्रापित-छिद्रागाढं च स्खलन्तः । शनैः शनैरपसृत्य लीनन्ति गहनेषु ।।१५।। अर्थ :- केटलाक अधीरा वळी स्खलना यामता महामहेनते गाढ छिद्रने प्राप्त करीने धीरे धीरे सरकीने गहनवनमां छुपाई गया. हिन्दी अनुवाद :- कुछ अधैर्यवान् स्खलित होते हुए अति परिश्रम से गाढ़ छिद्र को प्राप्त कर के धीरे-धीरे खिसक कर गहनवन में छुप गये। गाहा : केवि ह तेविर-देहा सिढिलीकय-कच्छ-बंधणा धणियं । पमुक्क-पुरिसयारा अंगीकय-दीण-जण-चेट्ठा ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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