Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 115
________________ हिन्दी अनुवाद :- नूतन मूंग के रंग जैसे चर्म से घुटने तक आच्छादित, भयंकर शरीरवाले, मसि के समूह जैसे काले, क्रोधित यमराज जैसे, दिखने में भयंकर, कर्कश और वीभत्स शरीरवाले, पलाश के पर्ण की माला को धारण किए हुए, [जाफल जैसी लाल आँख वाले, रूक्ष बालों के समूहवाले, अच्छी तरह से कवच को धारण किये हुए, पीठ पर स्थापित किए भाथेवाले, कान तक आकृष्ट धनुष के पीछे दीखते बाण के अग्र भागवाले, अनेक तलवारों से युक्त, हाथ में गृहीत लकड़ीवाले, कितने लोग पत्थर फेंकने के अस्त्र विशेष को घुमाकर अव्यक्त आवाज से लोगों के प्राण को हरनेवाले, निर्लज्ज-निष्ठुर दशों दिशाओं में मारोकाटो बोलते अज्ञात रीति से अति चपलता से भील आ गये। गाहा : पडिएस तओ तेसं सत्थो सव्यो वि आउलीभओ। भिल्लाण पउर-भावा-वक्खेवा सत्थ-पुरिसाण ।।१०।। छाया: पतितेषु ततस्तेषु सार्थः सर्वोऽपि आकुलीभूतः । भिल्लानां प्रचुरभावात् व्याक्षेपात् सार्थ - पुरुषाणाम् ।।१०।। अर्थ :- . भिल्लो घणा होवाथी तथा सार्थ पुरुषोनी व्यग्रता होवाथी त्यां ते भील्लो आवे छते समस्त सार्थ व्याकुल थयो। हिन्दी अनुवाद :- भील लोगों के बहुत होने से तथा सार्थ के कुछ पुरुषों की व्यग्रता से समस्त सार्थ व्याकुलित हुआ। गाहा : अह तम्मि सरण-रहिए लहसिज्जंते समत्थ-सत्थम्मि । दप्प-परिपूरियंगा हक्किय जंपंति के वि नरा ।११।। छाया : अथ तस्मिन् शारण-रहिते सस्यमाने समस्त सार्थे । दर्प-परिपूरिताङ्गा निषिद्धा जल्पन्ति केऽपि नराः ॥११॥ अर्थ : हवे ते सम्पूर्ण सार्थ शरण रहित सरकवा माण्डयो क्यारे निषेधकरायेला छतां अभिमानथी भरेला केटलाक पुरुषो बोलता हता। हिन्दी अनुवाद :- अब वह सम्पूर्ण सार्थ शरण रहित हटने लगा तब निषेध करने पर भी घमंडी पुरुष इस तरह बोलने लगे। गाहा : रे ! रे ! पिसाय-रूवा ! कत्थिण्हिं जाह दिट्टि-पह-पडिया । पयडह सव्वं जइ अस्थि तुम्हमिह पोरिसं किंपि ।।१२।। छाया:.. रे ! रे ! पिशाच-रूपाः ! कुत्रेदानीं यास्यथ दृष्टि-पथपतिताः । प्रकटयत सर्वं यदि अस्ति युष्माकमिह पौरुषं किमपि ।।१२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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