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छाया :
केsपि खलु वेपनशीलदेहाः शिथिलीकृत-कक्ष- बन्धनाः गाढम् । प्रमुक्त पुरुषकारा अङ्गीकृत- दीन-जन चेष्टाः ॥१६॥ अर्थ :केटलाक धूमता शरीरवाळा, ढीला करेला का छडीनां बंधनवाला, त्याग करेला पौरुषत्ववाळा, कायर लोकोनी चेष्टाओनो अंगीकार करेला. हिन्दी अनुवाद कुछ कम्पित शरीरवाले, शिथिल किये हुए कक्ष-बन्धन वाले, व्यंजित पौरुषत्ववाले कायर लोगों की चेष्टाओं को अंगीकार करने लगे।
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गाहा :
परिचत्त-सयल - लज्जा कहकहमवि मोक्खणं विमग्गंता । तेसिं चिय पावाणं कुणंति बहु- चाडु - कम्माणि ।।१७।।
छाया :
पापानां
परित्यक्त-सकल- लज्जाः कथकथमपि मोक्षणं विमार्गयन्तः । तेषामेव कुर्वन्ति बहु-चाटु-कर्माणि ॥१७॥ :- व्यक्त सर्व लज्जावाळा, गमे ते रीते छूटवानो मार्ग शोधेल, ते पापीओनाज घणी खुशामत करवा लाग्या.
अर्थ :
हिन्दी अनुवाद :- निर्लज्ज, किसी भी तरह छूटने के मार्ग को ढूंढते, वही पापियों के ही चाटु कर्म करने लगे।
गाहा :
केवि हु मयमिव भू-पट्ठि-संठियं अप्पयं पयंसंति ।
केविहु छुहंति गंठिं महीए पक्खाणि जोएसा ।। १८ ।।
छाया :
केsपि खलु मृतमिव भू-पृष्ठ-संस्थितं आत्मानं प्रदर्शयति । केsपि खलु क्षिपन्ति ग्रन्थिं मह्यां पक्षाणि योजयित्वा ॥१८॥ अर्थ :- केटलाक मडदानी जेम पृथ्वीनीपीट्ठ उपर रहेलां पोताने बतावता हता वली केटलाक बे हाथ जोडीने (डरीने) पृथ्वी ऊपर पोतानी गांठडी फेंकता हता । हिन्दी अनुवाद :- कितने ही मृत की तरह पृथ्वी पर रहे हुए अपने को दिखाते थे और कुछ लोग अञ्जली जोड़कर पृथ्वी पर अपनी गठरी फेंकते थे।
गाहा :
छाया :
जे वि हु इहो तओ इंधणाइ- अट्ठा गयासि सत्थाओ ।
तेवि हु कल -यल-सहं सोडं वच्यंति दूरयरं ।। १९ । ।
येsपि हि इतस्तत इन्धनाधर्थं गता आसन् सार्थात् । तेऽपि खलु कलकल शब्दं श्रुत्वा वजन्ति दूरतरम् ||१९| अर्थ :- जो लोको सार्थथी दूर बळतण माटे अहीं-नहीं गया हता तेओ पण कोलाहल ना शब्दो सांभळीने सार्थयी वधारे दूर जता रह्या.
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