Book Title: Sramana 2004 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 120
________________ छाया : एवं धीरयं रे ! रे लेह इमस्सवि फंडेमो एवं समुल्लवंता वलिया ते झत्ति समुल्लपतः । च निशम्य द्विः त्रिः धनदेवस्योल्लापान् सुभटेभ्योऽपि भूरि-भय जनकान् ॥२६॥ रे ! रे ! लात अस्यापि भ्रंशयागः धीरतां किरातस्य । एवं समुल्लपन्तः वलितास्ते झटिति तदभिमुखम् ॥२७॥ अर्थ :- आ प्रमाणे बे-त्रण वार बोलतां, सुभटोने पण घणो भय पैदा करनार धनदेवना आलापोने सांभळीने..... अरे ! रे ! पकड़ो आने पण मारी नांखीये, भिल्लनी धीरता जूओ, आ प्रमाणे बोलता तेओ झल्दीथी ते तरफ वळया. छाया : हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार दो-तीन बार बोलते सुभटों को भी अतिभय उत्पन्न करनेवाले धनदेव के उल्लापो को सुनकर अरे ! रे ! पकड़ो इन्हें भी मार डालो, भिल्ल की धैर्यता तो देखो, इस प्रकार बोलते हुए जल्दी से उस तरफ गए । गाहा : किराडस्स | तयभिमुहं ||२७| छाया : धणदेवस्संतियं पत्ता य आहसंता समंता ते । तिक्खासि - कोंत-तोमर - भल्लीहि य पहरिउं लग्गा ||२८|| प्राप्ताश्याहसन्तः धनदेवस्यान्तिकं समन्तात् ते । तिक्ष्णासि - कुंत - तोमर-भल्लीभिश्च प्रहर्तुं लग्नाः ॥२८॥ अर्थ :- तेओ थोडुं थोडुं हसतां धनदेवनी नजीक पहोंची गया अने चारे बाजुथी तीक्ष्ण- तलवार - भाला-तीर अने भालाओ वड़े तेना ऊपर प्रहार करवा लाग्या. हिन्दी अनुवाद :- वे लोग थोड़ा-थोड़ा हंसते हुए धनदेव के पास पहुंचकर चारों ओर से तीक्ष्ण - तोमर और भालों से प्रहार करने लगे । तलवार गाहा : धणदेवोवि असंको तहा पयट्टेसु तेसु भिल्लेसु । ताणमुरमोडिऊणं कुणइ निय पोरिसं पयडं । । २९ ।। धनदेवोऽप्यशंकस्तथा प्रवृत्तेषु वेषु भिल्लेषु । तेषामुरमोटयित्वा करोति निज-पौरुषं प्रकटम् ||२९|| अर्थ :- ते भिल्लो तेवा प्रकारे प्रवृत्त थये छते शंकारहित एवो धनदेव तो ओनी आगळ खुल्ली छाती राखीने पोताना पुरुषार्थने प्रकट करे छे. हिन्दी अनुवाद :- उन भिल्ल लोगों के इस प्रकार चारों ओर से प्रहार करने पर भी निःशंकित धनदेव उनके आगे अपना पुरुषार्थ प्रकट करता है। Jain Education International 8 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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